शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

sura e baqrah part 3(‍the cow)

 

253. यह सब रसूल (जो हमने भेजे) उनमें से बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनमें से बाज़ तो ऐसे हैं जिनसे ख़ुद ख़ुदा ने बात की उनमें से बाज़ के (और तरह पर) दर्जे बुलन्द किये और मरियम के बेटे ईसा को (कैसे कैसे रौशन मौजिज़े अता किये) और रूहुलकुदस (जिबरईल) के ज़रिये से उनकी मदद की और अगर ख़ुदा चाहता तो लोग इन (पैग़म्बरों) के बाद हुये वह अपने पास रौशन मौजिज़े आ चुकने पर आपस में न लड़ मरते मगर उनमें फूट पड़ गई पस उनमें से बाज़ तो ईमान लाये और बाज़ काफ़िर हो गये और अगर ख़ुदा चाहता तो यह लोग आपस में लड़ते मगर ख़ुदा वही करता है जो चाहता

254. ऐ ईमानदारों जो कुछ हमने तुमको दिया है उस दिन के आने से पहले ( ख़ुदा की राह में खर्च करो जिसमें न तो ख़रीदो फरोख्त होगी और न यारी (और न आशनाई) और न सिफ़ारिश ( ही काम आयेगी) और कुफ़ करने वाले ही तो जुल्म ढाते

255. ख़ुदा ही वो जाते पाक है कि उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वह) ज़िन्दा है (और) सारे जहान का संभालने वाला है उसको न ऊँघ आती है न नींद जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (गरज़ सब कुछ) उसी का है कौन ऐसा है जो बग़ैर उसकी इजाज़त के उसके पास किसी की सिफ़ारिश करे जो कुछ उनके सामने मौजूद है (वह) और जो कुछ उनके पीछे (हो चुका) है (खुदा सबको) जानता है और लोग उसके इल्म में से किसी चीज़ पर भी अहाता नहीं कर सकते मगर वह जिसे जितना चाहे (सिखा दे) उसकी कुर्सी सब आसमानों और ज़मीनों को घेरे हुये है और उन दोनों (आसमान व ज़मीन) की निगेहदाश्त उसपर कुछ‌भी मुश्किल नहीं और वह आलीशान बुजुर्ग मरतबा है

256. दीन में किसी तरह की जबरदस्ती नहीं क्योंकि हिदायत गुमराही से (अलग) ज़ाहिर हो चुकी तो जिस शख्स ने झूठे खुदाओं बुतों से इंकार किया और खुदा ही पर ईमान लाया तो उसने वो मज़बूत रस्सी पकड़ी है। जो टूट ही नहीं सकती और ख़ुदा सब कुछ सुनता और जानता

257. ख़ुदा उन लोगों का सरपरस्त है जो ईमान ला चुके कि उन्हें‌ (गुमराही की) तारीक़ियों से निकाल कर (हिदायत की रौशनी में लाता है और जिन लोगों ने कुफ़ इख्तेयार किया उनके सरपरस्त शैतान हैं कि उनको (ईमान की) रौशनी से निकाल कर (कुफ़ की) तारीकियों में डाल देते हैं यही लोग तो जहन्नुमी हैं (और) यही उसमें हमेशा रहेंगे

258. (ऐ रसूल) क्या तुम ने उस शख्स (के हाल) पर नज़र नहीं की जो सिर्फ़ इस बिरते पर कि ख़ुदा ने उसे सल्तनत दी थी इब्राहीम से उनके परवरदिगार के बारे में उलझ पड़ा कि जब इब्राहीम ने (उससे) कहा कि मेरा परवरदिगार तो वह है जो लोगों को) जिलाता और मारता है तो वो भी (शेख़ी में) आकर कहने लगा मैं भी जिलाता और मारता हूं (तुम्हारे ख़ुदा ही में कौन सा कमाल है) इब्राहीम ने कहा (अच्छा) खुदा तो आफ़ताब को पूरब से निकालता है भला तुम उसको पश्चिम से निकालो इस पर वह काफ़िर हक्का बक्का हो कर रह गया (मगर ईमान न लाया ) और ख़ुदा ज़ालिमों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुंचाया

259. (ऐ रसूल तुमने) मसलन उस (बन्दे के हाल पर भी नज़र की जो एक गाँव पर से होकर गुज़रा और वो ऐसा उजड़ा था कि अपनी छतों पर से ढह के गिर पड़ा था ये देखकर वह बन्दा (कहने लगा) अल्लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी के बाद क्योंकर आबाद करेगा इस पर ख़ुदा ने उसको (मार डाला) सौ बरस तक मुर्दा रखा फिर उसको जिला उठाया (तब) पूछा तुम कितनी देर पड़े रहे अर्ज क़ी एक दिन पड़ा रहा एक दिन भी कम फ़रमाया नहीं तुम (इसी हालत में) सौ बरस पड़े रहे अब ज़रा अपने खाने पीने की चीज़ों) को देखो कि बुसा तक नहीं और ज़रा अपने गधे (सवारी) को तो देखो कि उसकी हड्डियाँ ढेर पड़ी हैं और सब इस वास्ते किया है ताकि लोगों के लिये तुम्हें क़ुदरत का नमूना बनाये और अच्छा अब (इस गधे की) हड्डियों की तरफ़ नज़र करो कि हम क्योंकर जोड़ जाड़ कर ढाँचा बनाते हैं फिर उनपर गोश्त चढ़ाते हैं पस जब ये उनपर ज़ाहिर हुआ तो बेसाख्ता बोल उठे कि (अब) मैं ये यक़ीने कामिल जानता हूं कि ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है

260. और (ऐ रसूल) वह वाकेया भी याद करो जब इबराहीम ने खुदा से) दरख्वास्त की कि ऐ मेरे परवरदिगार तू मुझे भी तो दिखा दे कि तू मुर्दों को क्योंकर जिन्दा करता है ख़ुदा ने फ़रमाया क्या तुम्हें (इसका) यक़ीन नहीं इबराहीम ने अर्ज़ की (क्यों नहीं) यक़ीन तो है मगर आँख से देखना इसलिए चाहता हूं कि मेरे दिल को पूरा इत्मिनान हो जाए फ़रमाया ( अगर ये चाहते हो तो चार परिन्दे लो और उनको अपने पास मँगवा लो और टुकड़े टुकड़े कर डालो फिर हर पहाड़ पर उनका एक एक टुकड़ा रख दो उसके बाद उनको बुलाओ (फिर देखो तो क्यों कर वह सब के सब तुम्हारे पास दौड़े हुए आते हैं और समझ रखो कि ख़ुदा बेशक ग़ालिब और हिकमत वाला है

261. जो लोग अपने माल खुदा की राह में खर्च करते हैं उनके (खर्च) की मिसाल उस दाने की सी मिसाल है जिसकी सात बालियॉ निकलें (और) हर बाली में सौ (सौ) दाने हों और ख़ुदा जिसके लिये चाहता है दूना कर देता है और खुदा बड़ी गुन्जाइश वाला (हर चीज़ से) वाक़िफ़ है

262. जो लोग अपने माल ख़ुदा की राह में खर्च करते हैं और फिर ख़र्च करने के बाद किसी तरह का एहसान नहीं जताते हैं और न जिनपर एहसान किया है उनको सताते हैं उनका अज्र (व सवाब) उनके परवरदिगार के पास है और न आखि़रत में उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह ग़मगीन होंगे

263. (सायल को) नरमी से जवाब दे देना और उसके इसरार पर न झिड़कना बल्कि) उससे दरगुज़र करना उस खैरात से कहीं बेहतर है। जिसके बाद (सायल को) ईज़ा पहुंचे और ख़ुदा हर शै से बेपरवा (और) बुर्दबार है 264. ऐ ईमानदारों आपनी खैरात को एहसान जताने और (सायल को) ईज़ा ( तकलीफ) देने की वजह से उस शख्स की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोगों को दिखाने के वास्ते ख़र्च करता है और ख़ुदा और रोजे आखेरत पर ईमान नहीं रखता तो उसकी खैरात की मिसाल उस चिकनी चट्टान की सी है जिसपर कुछ ख़ाक ( पड़ी हुई) हो फिर उसपर ज़ोर शोर का (बड़े बड़े क़तरों से) मैंह बरसे और उसको (मिट्टी को बहाके) चिकना चुपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) रियाकार अपनी उस ख़ैरात या उसके सवाब में से जो उन्होंने की है किसी चीज़ पर कब्ज़ा न पाएंगे (न दुनिया में न आखि़रत में) और ख़ुदा काफ़िरों को हिदायत करके मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया

265. और जो लोग ख़ुदा की ख़ुशनदी के लिए और अपने दिली एतक़ाद से अपने माल ख़र्च करते हैं उनकी मिसाल उस (हरे भरे) बाग़ की सी है जो किसी टीले या टीकरे पर लगा हो और उस पर ज़ोर शोर से पानी बरसा तो अपने दुगने फल लाया और अगर उस पर बड़े धड़ल्ले का पानी न भी बरसे तो उसके लिये हल्की फुआर (ही काफ़ी) है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उसकी देखभाल करता रहता है

266. भला तुम में कोई भी इसको पसन्द करेगा कि उसके लिए खजूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो उसके नीचे नहरें जारी हों और उसके लिए उसमें तरह तरह के मेवे हों और (अब) उसको बुढ़ापे ने घेर लिया है और उसके (छोटे छोटे) नातवॉ कमज़ोर बच्चे हैं कि एकबारगी उस बाग़ पर ऐसा बगोला आ पड़ा जिसमें आग (भरी) थी कि वह बाग़ जल भुन कर रह गया ख़ुदा अपने एहकाम को तुम लोगों से साफ़ साफ़ बयान करता है ताकि तुम गौर करो

267. ऐ ईमान वालों अपनी पाक कमाई और उन चीज़ों में से जो हमने तुम्हारे लिए ज़मीन से पैदा की हैं (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करो और बुरे माल को (ख़ुदा की राह में) देने का क़सद भी न करो हालाँकि अगर ऐसा माल कोई तुमको देना चाहे तो तुम अपनी ख़ुशी से उसके लेने वाले नहीं हो मगर ये कि उस (के लेने) में (अमदन) आँख चुराओ और जाने रहो कि ख़ुदा बेशक बेनियाज़ (और) सज़ावारे हम्द है

268. शैतान तमुको तंगदस्ती से डराता है और बुरी बात (बुख्ल) का तुमको हुक्म करता है और ख़ुदा तुमसे अपनी बख्शिश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता है और ख़ुदा बड़ी गुन्जाइश वाला और सब बातों का जानने वाला है

269. वह जिसको चाहता है हिकमत अता फ़रमाता है और जिसको ( ख़ुदा की तरफ) से हिकमत अता की गई तो इसमें शक नहीं कि उसे ख़ूबियों से बड़ी दौलत हाथ लगी और अक्लमन्दों के सिवा कोई नसीहत मानता ही नहीं

270. और तुम जो कुछ भी ख़र्च करो या कोई मन्नत मानो ख़ुदा उसको ज़रूर जानता है और (ये भी याद रहे कि ज़ालिमों का (जो) ख़ुदा का हक़ मार कर औरों की नज्र करते हैं (क़यामत में) कोई मददगार न होगा

271. अगर ख़ैरात को ज़ाहिर में दो तो यह (ज़ाहिर करके देना) भी अच्छा है और अगर उसको छिपाओ और हाजतमन्दों को दो तो ये छिपा कर देना तुम्हारे हक़ में ज्यादा बेहतर है और ऐसे देने को ख़ुदा तुम्हारे गुनाहों का कफ्फ़ारा कर देगा और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है

272. ऐ रसूल उनका मंज़िले मक़सूद तक पहुंचाना तुम्हारा काम नहीं ( तुम्हारा काम सिर्फ रास्ता दिखाना है) मगर हाँ ख़ुदा जिसको चाहे मंज़िले मक़सूद तक पहुंचा दे और (लोगो) तुम जो कुछ नेक काम में ख़र्च करोगे तो अपने लिए और तुम ख़ुदा की ख़ुशनूदी के सिवा और काम में खर्च करते ही नहीं हो (और जो कुछ तुम नेक काम में खर्च करोगे) (क़यामत में) तुमको भरपूर वापस मिलेगा और तुम्हारा हक़ न मारा जाएगा

273. (यह खैरात) ख़ास उन हाजतमन्दों के लिए है जो ख़ुदा की राह में घिर गये हो (और) रूए ज़मीन पर जाना चाहें तो) चल नहीं सकते नावाक़िफ़ उनको सवाल न करने की वजह से अमीर समझते हैं (लेकिन) तू (ऐ मुख़ातिब अगर उनको देखे) तो उनकी सूरत से ताड़ जाये (कि ये मोहताज हैं अगरचे) लोगों से चिमट के सवाल नहीं करते और जो कुछ भी तुम नेक काम में खर्च करते हो ख़ुदा उसको ज़रूर जानता है

274. जो लोग रात को या दिन को छिपा कर या दिखा कर ( ख़ुदा की राह में) ख़र्च करते हैं तो उनके लिए उनका अज्र व सवाब उनके परवरदिगार के पास है और (क़यामत में) न उन पर किसी क़िस्म का ख़ौफ़ होगा और न वह आजुर्दा ख़ातिर होंगे

275. जो लोग सूद खाते हैं वह (क़यामत में) खड़े न हो सकेंगे मगर उस शख्स की तरह खड़े होंगे जिस को शैतान ने लिपट कर मख़बूतुल हवास (पागल) बना दिया है ये इस वजह से कि वह उसके कायल हो गए कि जैसा बिक्री का मामला वैसा ही सूद का मामला हालकि बिक्री को तो खुदा ने हलाल और सूद को हराम कर दिया बस जिस शख्स के पास उसके परवरदिगार की तरफ़ से नसीहत (मुमानियत) आये और वह बाज़ आ गया तो इस हुक्म के नाज़िल होने से पहले जो सूद ले चुका वह तो उस का हो चुका और उसका अम्र (मामला) ख़ुदा के हवाले है। और जो मनाही के बाद फिर सूद ले (या बिक्री के माले को यकसा बताए जाए) तो ऐसे ही लोग जहन्नुम में रहेंगे

276. खुदा सूद को मिटाता है और ख़ैरात को बढ़ाता है और जितने नाशुक्रे गुनाहगार हैं खुदा उन्हें दोस्त नहीं रखता

277. (हॉ) जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ी और ज़कात दिया किये उनके लिए अलबत्ता उनका अज्र व (सवाब) उनके परवरदिगार के पास है और (क़यामत में) न तो उन पर किसी क़िस्म का ख़ौफ़ होगा और न वह रन्जीदा दिल होंगे

278. ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो और जो सूद लोगों के ज़िम्मे बाक़ी रह गया है अगर तुम सच्चे मोमिन हो तो छोड़ दो

279. और अगर तुमने ऐसा न किया तो ख़ुदा और उसके रसूल से लड़ने के लिये तैयार रहो और अगर तुमने तौबा की है तो तुम्हारे लिए तुम्हारा असल माल है न तुम किसी का ज़बरदस्ती नुकसान करो न तुम पर ज़बरदस्ती की जाएगी

280. और अगर कोई तंगदस्त तुम्हारा क़र्जदार हो) तो उसे खुशहाली तक मोहल्लत (दो) और सदक़ा करो और अगर तुम समझो तो तुम्हारे हक़ में ज्यादा बेहतर है कि असल भी बख्श दो

281. और उस दिन से डरो जिस दिन तुम सब के सब ख़ुदा की तरफ़ लौटाये जाओगे फिर जो कुछ जिस शख्स ने किया है उसका पूरा पूरा बदला दिया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282. ऐ ईमानदारों जब एक मियादे मुक़र्ररा तक के लिए आपस में कर्ज का लेन देन करो तो उसे लिखा पढ़ी कर लिया करो और लिखने वाले को चाहिये कि तुम्हारे दरमियान तुम्हारे क़ौल व क़रार को, इन्साफ़ से ठीक ठीक लिखे और लिखने वाले को लिखने से इन्कार न करना चाहिये (बल्कि) जिस तरह ख़ुदा ने उसे लिखना पढ़ना) सिखाया है उसी तरह उसको भी वे उज्र (बहाना) लिख देना चाहिये और जिसके ज़िम्मे क़र्ज़ आयद होता है उसी को चाहिए कि (तमस्सुक) की इबारत) बताता जाये और ख़ुदा से डरे जो उसका सच्चा पालने वाला है डरता रहे और (बताने में) और क़र्ज़ देने वाले के हुकूक़ में कुछ कमी न करे अगर क़र्ज़ लेने वाला कम अक्ल या माजूर या खुद (तमस्सुक) का मतलब लिखवा न सकता हो तो उसका सरपरस्त ठीक ठीक इन्साफ़ से लिखवा दे और अपने लोगों में से जिन लोगों को तुम गवाही लेने के लिये पसन्द करो (कम से कम) दो मदों की गवाही कर लिया करो फिर अगर दो मर्द न हो तो (कम से कम एक मर्द और दो औरतें (क्योंकि) उन दोनों में से अगर एक भूल जाएगी तो एक दूसरी को याद दिला देगी, और जब गवाह हुक्काम के सामने (गवाही के लिए) बुलाया जाएं तो हाज़िर होने से इन्कार न करे और क़र्ज़ का मामला ख्वाह छोटा हो या उसकी मियाद मुअय्युन तक की (दस्तावेज़) लिखवाने में काहिली न करो, ख़ुदा के नज़दीक ये लिखा पढ़ी बहुत ही मुन्सिफ़ाना कारवाई है और गवाही के लिए भी बहुत मज़बूती है और बहुत क़रीन (क़यास) है कि तुम आईन्दा किसी तरह के शक व शुबहा में न पड़ो मगर जब नक़द सौदा हो जो तुम लोग आपस में उलट फेर किया करते हो तो उसकी (दस्तावेज) के न लिखने में तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं है (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोख्त) हो तो गवाह कर लिया करो और क़ातिब (दस्तावेज़) और गवाह को ज़रर न पहुँचाया जाए और अगर तुम ऐसा कर बैठे तो ये ज़रूर तुम्हारी शरारत है और ख़ुदा से डरो ख़ुदा तुमको मामले की सफ़ाई सिखाता है और वह हर चीज़ को ख़ूब जानता

283. और अगर तुम सफ़र में हो और कोई लिखने वाला न मिले (और क़र्ज़ देना हो) तो रहन या कब्ज़ा रख लो और अगर तुममें एक का एक को एतबार हो तो (यूं ही क़र्ज़ दे सकता है मगर) फिर जिस शख्स पर एतबार किया गया है (क़र्ज़ लेने वाला) उसको चाहिये क़र्ज़ देने वाले की अमानत (क़र्ज़) पूरी पूरी अदा कर दे और अपने पालने वाले ख़ुदा से डरे (मुसलमानो) तुम गवाही को न छिपाओ और जो छिपाएगा तो बेशक उसका दिल गुनाहगार है और तुम लोग जो कुछ करते हो ख़ुदा उसको ख़ूब जानता है

284. जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़) सब कुछ खुदा ही का है और जो कुछ तुम्हारे दिलों में हे ख्वाह तुम उसको ज़ाहिर करो या उसे छिपाओ ख़ुदा तुमसे उसका हिसाब लेगा, फिर जिस को चाहे बख्श दे और जिस पर चाहे अज़ाब करे, और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है

285. हमारे पैग़म्बर (मोहम्मद) जो कुछ उनपर उनके परवरदिगार की तरफ से नाज़िल किया गया है उस पर ईमान लाए और उनके साथ) मोमिनीन भी (सबके) सब ख़ुदा और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों पर ईमान लाए (और कहते हैं कि) हम ख़ुदा के पैग़म्बरों में से किसी में तफ़रक़ा नहीं करते और कहने लगे ऐ हमारे परवरदिगार हमने (तेरा इरशाद ) सुना

286. और मान लिया परवरदिगार हमें तेरी ही मग़फ़िरत की ख्वाहिश है) और तेरी ही तरफ़ लौट कर जाना है ख़ुदा किसी को उसकी ताक़त ज्यादा तकलीफ़ नहीं देता उसने अच्छा काम किया तो अपने नफ़े के लिए और बुरा काम किया तो उसका वबाल) उसी पर पडेग़ा ऐ हमारे परवरदिगार अगर हम भूल जाऐं या ग़लती करें तो हमारी गिरफ्त न कर ऐ हमारे परवरदिगार हम पर वैसा बोझ न डाल जैसा हमसे अगले लोगों पर बोझा डाला था, और ऐ हमारे परवरदिगार इतना बोझ जिसके उठाने की हमें ताक़त न हो हमसे न उठवा और हमारे कुसूरों से दरगुज़र कर और हमारे गुनाहों को बख्श दे और हम पर रहम फ़रमा तू ही हमारा मालिक है तू ही काफ़िरों के मुक़ाबले में हमारी मदद कर

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Sura e taha

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