1.ऐ ताहा ( रसूल अल्लाह)
2. हमने तुम पर कुरान इसलिए नाज़िल नहीं किया कि तुम (इस क़दर) मशक्कत उठाओ
3. मगर जो शख्स खुदा से डरता है उसके लिए नसीहत (क़रार दिया है)
4. (ये) उस शख्स की तरफ़ से नाज़िल हुआ है जिसने ज़मीन और ऊँचे-ऊँचे आसमानों को पैदा किया
5. वही रहमान है जो अर्श पर (हुक्मरानी के लिए) आमादा व मुस्तईद है
6. जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और जो कुछ दोनों के बीच में है और जो कुछ ज़मीन के नीचे है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है
7. और अगर तू पुकार कर बात करे तो भी आहिस्ता करे तो भी) वह यक़ीनन भेद और उससे ज्यादा पोशीदा चीज़ को जानता है।
8. अल्लाह (वह माबूद है कि) उसके सिवा कोई माबूद नहीं है (अच्छे-अच्छे ) उसी के नाम हैं
9. और (ऐ रसूल) क्या तुम तक मूसा की ख़बर पहुँची है कि जब उन्होंने दूर से आग देखी
10. तो अपने घर के लोगों से कहने लगे कि तुम लोग (ज़रा यही) ठहरो मैंने आग देखी है क्या अजब है कि मैं वहाँ (जाकर) उसमें से एक अंगारा तुम्हारे पास ले आऊँ या आग के पास किसी राह का पता पा जाऊँ
11. फिर जब मूसा आग के पास आए तो उन्हें आवाज आई
12. कि ऐ मूसा बेशक मैं ही तुम्हारा परवरदिगार हूँ तो तुम अपनी जूतियाँ उतार डालो क्योंकि तुम (इस वक्त) तुआ (नामी) पाक़ीज़ा चटियल मैदान में हो
13. और मैंने तुमको पैग़म्बरी के वास्ते मुन्तख़िब किया (चुन लिया) है तो जो कुछ तुम्हारी तरफ वही की जाती है उसे कान लगा कर सुनो
14. इसमें शक नहीं कि मैं ही वह अल्लाह हूँ कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं तो मेरी ही इबादत करो और मेरी याद के लिए नमाज़ बराबर पढ़ा करो
15. (क्योंकि) क़यामत ज़रूर आने वाली है और मैं उसे लामहौला छिपाए रखूँगा ताकि हर शख्स (उसके ख़ौफ से नेकी करे) और वैसी कोशिश की है उसका उसे बदला दिया जाए
16. तो (कहीं) ऐसा न हो कि जो शख्स उसे दिल से नहीं मानता और अपनी नफ़सियानी ख्वाहिश के पीछे पड़ा वह तुम्हें इस (फिक्र) से रोक दे तो तुम तबाह हो जाओगे
17. और ऐ मूसा ये तुम्हारे दाहिने हाथ में क्या चीज़ है
18. अर्ज़ की ये तो मेरी लाठी है मैं उस पर सहारा करता हूँ और इससे अपनी बकरियों पर ( और दरख्तों की) पत्तियाँ झाड़ता हूँ और उसमें मेरे और भी मतलब हैं
19. फ़रमाया ऐ मूसा उसको ज़रा ज़मीन पर डाल तो दो मूसा ने उसे डाल दिया
20. तो फ़ौरन वह साँप बनकर दौड़ने लगा (ये देखकर मूसा भागे)
21. तो फ़रमाया कि तुम इसको पकड़ लो और डरो नहीं मैं अभी इसकी पहली सी सूरत फिर किए देता हूँ
22. और अपने हाथ को समेंट कर अपने बग़ल में तो कर लो (फिर देखो कि) वह बग़ैर किसी बीमारी के सफेद चमकता दमकता हुआ निकलेगा ये दूसरा मौजिज़ा है।
23. (ये) ताकि हम तुमको अपनी (कुदरत की) बड़ी-बड़ी निशानियाँ दिखाएँ
24. अब तुम फिरऔन के पास जाओ उसने बहुत सर उठाया है
25. मूसा ने अर्ज़ की परवरदिगार (मैं जाता तो हूँ)
26. मगर तू मेरे लिए मेरे सीने को कुशादा फरमा
27. और दिलेर बना और मेरा काम मेरे लिए आसान कर दे और मेरी ज़बान से लुक़नत की गिरह खोल दे
28. ताकि लोग मेरी बात अच्छी तरह समझें और
29. मेरे कीनेवालों में से मेरे भाई हारून
30. को मेरा वज़ीर बोझ बटाने वाला बना दे
31. उसके ज़रिए से मेरी पुश्त मज़बूत कर दे
32. और मेरे काम में उसको मेरा शरीक बना
33. ताकि हम दोनों (मिलकर) कसरत से तेरी तसबीह करें
34. और कसरत से तेरी याद करें
35. तू तो हमारी हालत देख ही रहा है
36. फ़रमाया ऐ मूसा तुम्हारी सब दरख्वास्तें मंज़ूर की गई
37. और हम तो तुम पर एक बार और एहसान कर चुके हैं।
38. जब हमने तुम्हारी माँ को इलहाम किया जो अब तुम्हें "वही" के ज़रिए से बताया जाता है।
39. कि तुम इसे (मूसा को) सन्दूक में रखकर सन्दूक़ को दरिया में डाल दो फिर दरिया उसे ढकेल कर किनारे डाल देगा कि मूसा को मेरा दुशमन और मूसा का दुशमन (फिरऔन) उठा लेगा और मैंने तुम पर अपनी मोहब्बत को डाल दिया जो देखता (प्यार करता) ताकि तुम मेरी ख़ास निगरानी में पाले पोसे जाओ
40. (उस वक्त) जब तुम्हारी बहन चली (और फिर उनके घर में आकर कहने लगी कि कहो तो मैं तुम्हें ऐसी दाया बताऊँ कि जो इसे अच्छी तरह पाले तो (इस तदबीर से) हमने फिर तुमको तुम्हारी माँ के पास पहुँचा दिया ताकि उसकी आँखें ठन्डी रहें और तुम्हारी (जुदाई पर) कुढ़े नहीं और तुमने एक शख्स (क़िबती) को मार डाला था और सख्त परेशान थे तो हमने तुमको (इस) ग़म से जात दी और हमने तुम्हारा अच्छी तरह इम्तिहान कर लिया फिर तुम कई बरस तक मदयन के लोगों में जाकर रहे ऐ मूसा फिर तुम (उम्र के) एक अन्दाजे पर आ गए नबूवत के कायल हुए
41. और मैंने तुमको अपनी रिसालत के वास्ते मुन्तख़िब किया
42. तुम अपने भाई समैत हमारे मौजिज़े लेकर जाओ और (देखो ) मेरी याद में सुस्ती न करना
43. तुम दोनों फिर औन के पास जाओ बेशक वह बहुत सरकश हो गया है
44. फिर उससे (जाकर) नरमी से बातें करो ताकि वह नसीहत मान ले या डर जाए
45. दोनों ने अर्ज़ की ऐ हमारे पालने वाले हम डरते हैं कि कहीं वह हम पर ज्यादती (न) कर बैठे या ज्यादा सरकशी कर ले
46. फ़रमाया तुम डरो नहीं मैं तुम्हारे साथ हूँ (सब कुछ) सुनता और देखता हूँ
47. ग़रज़ तुम दोनों उसके पास जाओ और कहो कि हम आप के परवरदिगार के रसूल हैं तो बनी इसराइल को हमारे साथ भेज दीजिए और उन्हें सताइए नहीं हम आपके पास आपके परवरदिगार का मौजिज़ा लेकर आए हैं और जो राहे रास्त की पैरवी करे उसी के लिए सलामती है
48. हमारे पास खुदा की तरफ से ये "वही" नाज़िल हुईहै कि यक़ीनन अज़ाब उसी शख्स पर है जो (खुदा की आयतों को झुठलाए
49. और उसके हुक्म से मुँह मोड़े (ग़रज़ गए और कहा) फिरऔन ने पूछा ऐ मूसा आख़िर तुम दोनों का परवरदिगार कौन है
50. मूसा ने कहा हमारा परवरदिगार वह है जिसने हर चीज़ को उसके (मुनासिब ) सूरत अता फरमाई
51. फिर उसी ने ज़िन्दगी बसर करने के तरीके बताए फिरऔन ने पूछा भला अगले लोगों का हाल (तो बताओ कि क्या हुआ
52. मूसा ने कहा इन बातों का इल्म मेरे परवरदिगार के पास एक किताब (लौहे महफूज़) में (लिखा हुआ) है मेरा परवरदिगार न बहकता है न भूलता है
53. वह वही है जिसने तुम्हारे (फ़ायदे के) वास्ते ज़मीन को बिछौना बनाया और तुम्हारे लिए उसमें राहें निकाली और उसी ने आसमान से पानी बरसाया फिर (खुदा फरमाता है कि) हम ही ने उस पानी के ज़रिए से मुख्तलिफ़ क़िस्मों की घासे निकाली
54. (ताकि) तुम खुद भी खाओ और अपने चारपायों को भी चराओ कुछ शक नहीं कि इसमें अक्लमन्दों के वास्ते (क़ुदरते खुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं
55. हमने इसी ज़मीन से तुम को पैदा किया और (मरने के बाद) इसमें लौटा कर लाएँगे और उसी से दूसरी बार (क़यामत के दिन ) तुमको निकाल खड़ा करेंगे56. और मैंने फिरऔन को अपनी सारी निशानियाँ दिखा दी
57. इस पर भी उसने सबको झुठला दिया और न माना (और) कहने लगा ऐ मूसा क्या तुम हमारे पास इसलिए आए हो
58. कि हम को हमारे मुल्क (मिस्र से) अपने जादू के ज़ोर से निकाल बाहर करो अच्छा तो ( रहो ) हम भी तुम्हारे सामने ऐसा जादू पेश करते हैं फिर तुम अपने और हमारे दरमियान एक वक्त मुक़र्रर करो कि न हम उसके ख़िलाफ करे और न तुम और मुक़ाबला एक साफ़ खुले मैदान में हो
59. मूसा ने कहा तुम्हारे (मुक़ाबले) की मीयाद जीनत (ईद) का दिन है और उस रोज़ सब लोग दिन चढ़े जमा किए जाए
60. उसके बाद फिरऔन (अपनी जगह) लौट गया फिर अपने चलत्तर (जादू के सामान) जमा करने लगा